vata pitta kapha : वात पित्त कफ को संतुलित करने के लिए आयुर्वेदिक उपाय

Vata pitta kapha को संतुलित रखना बहुत जरूरी होता है। Vata pitta kapha के असुंतलन के कारण ही शरीर मे अनेकों प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। Vata pitta kapha तीनों दोषों को अगर समय पर ठिक किया जाए तो भविष्य में होने वाली गंभीर से गंभीर बीमारियों को भी ठिक किया जा सकता है या फिर उसे होने से पहले ही रोका जा सकता है.

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क्या होता हैं वात पित्त कफ – what is Vata Pitta Kapha
आयुर्वेद की माने तो हर व्यक्ति का शरीर अलग अलग होता है याने हर किसी की बॉडी अलग अलग दोष से बनी होती है। यह शरीर की प्रकृति ही होती है जो किसी को ठंडी पसंद होती है तो किसी को गर्मी, किसी को गर्मी सूट करती है तो किसी को ठंडी यह शरीर के त्रिदोष के कारण होता है जिसे Vata pitta kapha कहते है। यह दोष हर किसी में होता ही है कोई एक दोष ज्यादा दूसरा कम तो तीसरा उससे भी कम, आयुर्वेद की माने तो हमारा शरीर पांच तत्वों से बना हुआ होता है हवा, पानी, अग्नि, आकाश और पृथ्वी इस पांच तत्वों के अलग अलग कॉम्बिनेशन से तीन दोष बनते है जिसे Vata pitta kapha कहते है। इन्हें दोष इसीलिए कहते है क्यू ये कम ज्यादा होते रहते है। इसके तत्वों को जानते है
Vata = Air + Either
Pitta = Fire + Water
Kapha = Water + Earth

गिलोय करता है तीनों दोषों को संतुलित
गिलोय को त्रिदोषग्न कहा गया है। गिलोय Vata pitta kapha तीनों दोषों को संतुलित करता है। गिलोय का सेवन करने के लिए इसके डंडी का काढ़ा बनाकर पी सकते है, पत्ते का ताजा रस बनाकर पी सकते है। इसके अलावा मार्केट की रेडिमेड गोलियां का भी सेवन कर सकते है यह बॉडी के हर असंतुलन को दूर करती है। गिलोय हड्डियों को मजबूत बनाती है, जोड़ो के दर्द को दूर करती है। शरीर से किसी भी प्रकार के दर्द को दूर करने की क्षमता रखती है। बॉडी मे ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाती है, मोटापा को कम करती है डायबिटीज को होने से रोकती है। व्हाइट ब्लड सेल्स, रेड ब्लड सेल्स, प्लेटलेट्स यानी पूरे के पूरे ब्लड को शुद्ध कर के संतुलित करता है। बैक्टेरिया से लड़ने की ताकत प्रदान करती है गिलोय शरीर से टॉक्सिंस बाहर निकालता है। लिवर के लिए बहुत फायदेमंद है, डैमेज लिवर को पुनः रिपेयर करती है गिलोय, आयुर्वेद मे गिलोय को प्राकृतिक ज्वरनाशक कहा गया है, चाहे वो डेंगू हो, मलेरिया हो, स्वाइन फ्लू हो, टायफाइड हो, पीलिया हो उसके लक्षणों को कम करती है। गिलोय को आयुर्वेद मे प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर कहा जाता है। वैसे तो इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता लेकिन गिलोय का सेवन पर्याप्त मात्रा मे ही करना चाहिए नही तो इससे मचलाहट, पेट फूलना की समस्या होती है। गिलोय का सेवन मात्र हफ्ते मे तीन दिन करने से ही Vata pitta kapha तीनों दोष संतुलित होते है.

समान मुद्रा
हमारे तीनों दोषों को Vata pitta kapha को संतुलित करने की क्षमता रखता है समान मुद्रा, इसे पंचतत्व संतुलन मुद्रा और त्रिदोष नाशक मुद्रा भी कहा जाता है। समान मुद्रा शरीर के समान वायु को संतुलित करता है। इसे करने के लिए आराम से जमीन पर बैठना है और चारों उंगलियों को अंगूठे के आगे के हिस्से को नरमी से लगाकर हाथ को उपर की तरफ कर लेना है। समान मुद्रा लिवर को हेल्थी रखती है, मेटाबोलिज्म को बढ़ाती है। सुबह खाली पेट शुद्ध हवा मे करने से ज्यादा फायदा मिलता है। इस अभ्यास को रोजाना करने से Vata pitta kapha तीनों दोषों को संतुलित किया जा सकता है.

त्रिदोष नाशक एलोविरा
एलोवीरा पोषक तत्वों से भरपूर होता है, हमारे डाइजेशन को सुधारता है ऐलोविरा, ऐलोविरा मे एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज भरपूर मात्रा मे होती है। कई देशों में इसे वंडर प्लांट भी कहा जाता है, जो Vata pitta kapha तीनों दोषों को संतुलित करता है। समय से पहले होने वाले एंटी एजिंग को रोकता है। बालों की ग्रोथ के लिए काफी फायदेमंद होता है। स्कैल्प से डैंड्रफ को हटाता है। ड्राई स्किन के लिए रुखी स्किन के लिए काफी लाभकारी होती है। एलोवीरा को ज्यादा नहीं लेना होता क्यू कि इसके लग्जेक्टिव प्रॉपर्टीज से लूज मोशन की दिक्कत हो सकती है.

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त्रिदोष नाशक प्रणायाम
प्रणायाम शरीर को केवल बाहर से ही नही बल्की अंदर से भी उतना ही मजबूत बनाता है। बॉडी के अंदर के सभी अंगों को रिपेयर करता है। हमारे शरीर के 95 प्रतिषद बीमारियां केवल प्रणायाम खतम करने की ताकत रखता है। रोजाना अगर प्रणायाम किया जाए तो डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा, शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। और Vata pitta kapha को संतुलित रखने के लिए प्रणायाम एक बेहतरीन पर्याय है.

(सिर्फ 10 मिनट के प्रणायाम कभी बीमार नहीं पड़ोगे)

वात प्रकृति लक्षण और समाधान
वात प्रकृति से बाल, आंख और त्वचा पर प्रभाव पड़ता है। बाल रूखे, झड़ने और समय से पहले ही सफेद होने शुरू हो जाते है। कई प्रकार के तेल लगाने से भी और बालों के लिए विभिन्न तरह के औषधि से भी यदि लाभ नहीं मिल रहा तो वात काफी प्रकोपित है। धीरे धीरे से आंखों की रोशनी कम होनी शुरू होती है। स्किन रुखी ड्राई और ढीली होने लगती है। चेहरे पर झुरियां पड़ना शुरू होती है, ऐसी स्थिति है तो समझे वात प्रकृति असंतुलित है। वात प्रकृति मे कांस्टिपेशन की समस्या बनी हुई रहती है क्यू कि वात मल को सुखाती है। वात प्रकृति मे कभी भी पेट भरकर खाना नहीं चाहिए क्यू कि वात प्रकृति इंटेस्टाइन मे होने के कारण पेट पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे वात अधिक मात्रा मे बढ़नी शुरु होती है, इस स्थिति में बासी खाना नहीं चाहिए। वात को संतुलित करने के लिए गाय के देसी घी का इस्तेमाल करना चाहिए गाय के देसी घी से वात का प्रभाव कम होता है। इसके अलावा तिल के तेल से मालिश करने से भी वात मे आराम मिलता है, चुकीं वात प्रकृति मे कांस्टिपेशन होती है तो ऐसेमे अरेंडल तेल इसपर प्रभावी रूप से काम करता है। रात्रि में एक चमच अरेंडल तेल पीने से कांस्टिपेशन की समस्या दूर होती है। और अरेंडल का तेल वात को संतुलित करने में काफी मदद करता है.
पित्त प्रकृति के लक्षण और समाधान
पित्त दोष से बाल जल्द ही सफेद होते है। पित्त का सबसे महत्वपूर्ण काम होता है पाचन शक्ति को मजबूत करना, जब पित्त असंतुलित होती है तो पाचन तंत्र खराब होता है। एसिडिटी की समस्या हमेशा ही बनी रहती है। खाना ठीक से खाया नहीं जाता और खाना ठीक से हजम भी नहीं होता है। पित्त की स्थिति मे आहार पर ध्यान देना जरूरी होता है, आहार मे बहुत ज्यादा तली हुईं चीजें जैसे फास्ट फूड जंक फूड्स का त्याग करना जरूरी होता है। एसिडिक की चीजों का सेवन कम करना है और अल्कलाइन चीजों का सेवन बढ़ाना है। इस स्थिति में भी गाय का घी फायदेमंद होता है | कुल मिलाकर गाय का घी Vata pitta kapha तीनों के लिए ही फायदेमंद होता है.
कफ प्रकृति और समाधान 
कफ प्रकृति मे वजन काफी तेज़ी से बढ़ता है, क्यू की इसमें पाचन ठीक रहता है। इसमें सामान्य से भूख अच्छी होती है। कफ प्रकृति को अच्छी प्रकृति माना जाता है, इसमें आंखे, बाल और स्किन बहुत अच्छी होती है। कफ प्रकृति मे मोटापे कि समस्या रहती है क्यू कि इसमें वजन तेजी से बढ़ता रहता है। कफ प्रकृति मे सर्दी जुखाम और मोटापे के कारण होने वाली डायबिटीज की संभावना बनी रहती है। कफ प्रकृति के लोग अगर सक्रिय रहते है तो बिल्कुल ठीक है, लेकिन निष्क्रिय है तो इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कफ प्रकृति मे उष्ण यानि तासीर मे गर्म चीजों का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है। कफ प्रकृति मे शरीर को गर्म रखना जरुरी होता है, जिसके लिए आप शुद्ध शिलाजीत का भी उपयोग कर सकते है। शिलाजीत तासीर मे गर्म होने के कारण यह कफ प्रकृति मे काफी लाभकारी हो सकती है.

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